ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके: हरिशंकर परसाई का व्यंग्य जो जीवन बदल देगा (2025 में क्यों पढ़ें)
ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके – यह वाक्य 1990s की स्कूल किताबों से निकला एक ऐसा व्यंग्य है, जो आज भी दिल को छू जाता है। हरिशंकर परसाई की कलम से निकला यह अध्याय शिक्षा के अभिमान और श्रम की महत्ता पर तीखी चोट करता है। 2025 में, जब युवा बेरोजगारी और स्किल गैप से जूझ रहे हैं, यह अध्याय और भी प्रासंगिक लगता है। इस ब्लॉग में हम पूरे अध्याय का विस्तार करेंगे, उसके संदेश को आधुनिक उदाहरणों से जोड़ेंगे, और देखेंगे कि कैसे यह जीवन बदल सकता है। यदि आप 10वीं कक्षा में 1995-2000 के बीच पढ़े हैं, तो यह पोस्ट आपकी पुरानी यादों को ताजा कर देगी। आइए, शुरू करें!
परिचय: एक व्यंग्य जो समाज को आईना दिखाता है
1990s में, जब भारत आर्थिक उदारीकरण के दौर से गुजर रहा था, स्कूल की किताबों में एक अध्याय था जो युवा दिमागों को हिलाकर रख देता था – ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके। हरिशंकर परसाई की कलम से निकला यह व्यंग्य शिक्षा के नाम पर फैले अभिमान और श्रम की उपेक्षा पर करारी चोट करता है। उस समय, UP Board की 10वीं कक्षा की हिंदी किताब “हिंदी गद्य खंड” में यह अध्याय शामिल था, जो छात्रों को सिखाता था कि डिग्री के बिना भी जीवन में कमाई के सौ रास्ते हैं।
आज, 2025 में, जब बेरोजगारी की दर 7.45% (Statista) है और युवा डिग्री लेकर भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं, यह अध्याय और भी प्रासंगिक लगता है। परसाई जी का व्यंग्य कहता है कि उच्च शिक्षा हमें छोटे कामों से दूर कर देती है, जबकि अनपढ़ व्यक्ति मेहनत से सौ गुना ज्यादा कमा सकता है। इस ब्लॉग में हम पूरे अध्याय का विस्तार करेंगे, उसके संदेश को आधुनिक उदाहरणों से जोड़ेंगे, और देखेंगे कि कैसे यह जीवन बदल सकता है। अगर आप 1995-2000 के स्कूल स्टूडेंट हैं, तो यह पोस्ट आपकी पुरानी यादों को ताजा कर देगी। आइए, शुरू करें!
परसाई जी की शैली व्यंग्य से भरी है, जो समाज की विसंगतियों पर हंसाती भी है और सोचने पर मजबूर भी करती है। इस अध्याय में वह बताते हैं कि पढ़ाई का मतलब केवल किताबों से नहीं, बल्कि जीवन के व्यावहारिक पक्ष से है। ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके – यह लाइन एक कहानी का हिस्सा है, जहां एक अनपढ़ व्यक्ति अपनी मेहनत से अमीर बनता है, जबकि पढ़ा-लिखा व्यक्ति अभिमान में बर्बाद हो जाता है।
यह अध्याय नैतिक शिक्षा का हिस्सा था, जो छात्रों को बताता था कि श्रम ही सच्ची पूंजी है। 1990s में भारत में आर्थिक बदलाव हो रहे थे, और यह अध्याय युवाओं को व्यावसायिक स्किल्स की ओर प्रेरित करता था। आज, डिजिटल युग में, यह संदेश और भी महत्वपूर्ण है, जहां फ्रीलांसिंग और स्टार्टअप्स जैसे सौ रास्ते खुले हैं।
इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद, आप न सिर्फ इस अध्याय को 100 बार पढ़ना चाहेंगे, बल्कि इसे दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करेंगे, क्योंकि इसमें जीवन की सच्चाई छिपी है। आइए, परसाई जी के जीवन और उनकी लेखन शैली से शुरू करें।
हरिशंकर परसाई: व्यंग्य के मास्टर
हरिशंकर परसाई (1918-1995) हिंदी साहित्य के एक प्रमुख व्यंग्यकार थे, जिन्होंने समाज की विसंगतियों पर अपनी कलम चलाई। उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था, और उन्होंने पत्रकारिता, शिक्षण, और लेखन में अपना करियर बनाया। परसाई जी की रचनाएं जैसे “विकट संकट”, “ऐसे भी चलेगा”, और “शिक्षा का व्यंग्य” समाज पर तीखी टिप्पणियां करती हैं। 1990s में उनके निबंध स्कूल सिलेबस में शामिल थे, क्योंकि वे सरल भाषा में गहरी बातें कहते थे।
ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके जैसे अध्याय में परसाई जी की शैली स्पष्ट दिखती है – व्यंग्य से शुरू, कहानी से समझाना, और नैतिक संदेश से समाप्त। उन्होंने लिखा कि “समाज शिक्षा को पूजा की तरह देखता है, लेकिन श्रम को गुलामी।” यह अध्याय UP Board की “हिंदी गद्य खंड” (1997-1999) में शामिल था, जो छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा की ओर प्रेरित करता था।
परसाई जी का प्रभाव आज भी है – उनके व्यंग्य Netflix सीरीज “Sacred Games” जैसे मॉडर्न कंटेंट में दिखते हैं, जहां सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य होता है। इस अध्याय में वह बताते हैं कि शिक्षा का अभिमान कैसे व्यक्ति को बेरोजगार बनाता है, जबकि श्रम सौ दरवाजे खोलता है। आइए, अध्याय के मूल संदेश पर गौर करें।
अध्याय का मूल संदेश: ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके
हरिशंकर परसाई का यह व्यंग्य समाज की उस सोच पर चोट करता है, जहां पढ़ाई को कमाई का एकमात्र रास्ता माना जाता है। अध्याय एक कहानी से शुरू होता है – दो भाइयों की। बड़ा भाई श्यामू पढ़ाई छोड़कर बढ़ई का काम सीखता है, जबकि छोटा भाई रामू कॉलेज जाकर डिग्री लेता है। सालों बाद, रामू बेरोजगार है, क्योंकि वह छोटे कामों में शर्म महसूस करता है। श्यामू कहता है, “भाई, ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके – लेकिन तूने पढ़ाई की, अब अभिमान ने तेरे रास्ते बंद कर दिए।”
यह संदेश स्पष्ट है: शिक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन वह हमें श्रम से दूर नहीं करनी चाहिए। परसाई जी व्यंग्य में कहते हैं, “पढ़ाई ने हमें डिग्री दी, लेकिन मेहनत से मुंह मोड़ना सिखाया।” अध्याय में वह बताते हैं कि अनपढ़ व्यक्ति अपनी मेहनत से सौ रास्ते खोज लेता है, जबकि पढ़ा-लिखा व्यक्ति नौकरी की तलाश में भटकता रहता है।
1990s में भारत आर्थिक उदारीकरण के दौर से गुजर रहा था, और बेरोजगारी बढ़ रही थी। परसाई जी का यह निबंध उस समय की वास्तविकता को दर्शाता है – जहां डिग्रीधारी युवा क्लर्क की नौकरी ठुकराते थे, लेकिन अनपढ़ लोग छोटे बिजनेस से अमीर बनते थे। आज, 2025 में, जब AI और ऑटोमेशन नौकरियां छीन रहे हैं, यह संदेश और भी जरूरी है।
परसाई जी की कलम तीखी है – वे कहते हैं, “समाज पढ़ाई को पूजा की तरह देखता है, लेकिन श्रम को गुलामी।” अध्याय में कई उदाहरण हैं, जैसे एक अनपढ़ कुम्हार जो मिट्टी के बर्तन बेचकर परिवार पालता है, जबकि उसका पढ़ा-लिखा पड़ोसी बेरोजगार है। यह व्यंग्य हंसाता भी है और सोचने पर मजबूर करता है।
शिक्षा का अभिमान: छोटे कामों में शर्म
अध्याय का एक प्रमुख हिस्सा शिक्षा से आने वाले अभिमान पर है। परसाई जी व्यंग्य में कहते हैं, “उच्च शिक्षा लेने वाला युवा मजदूरी करने से कतराता है, क्योंकि उसे लगता है कि यह उसके स्टेटस से नीचे है।” रामू की कहानी में, वह बी.ए. पास होने के बाद गांव में खेतों में काम करने से इनकार करता है। वह सोचता है, “मैंने पढ़ाई की है, यह काम अनपढ़ों के लिए है।” परिणामस्वरूप, वह भूखा रहता है।
परसाई जी समाज पर चोट करते हैं – “पढ़ाई ने हमें डिग्री दी, लेकिन छोटे कामों में शर्म सिखाई।” 1990s में भारत में यह बहुत आम था, जब ग्रेजुएट युवा सरकारी नौकरी की तलाश में सालों बर्बाद कर देते थे, जबकि अनपढ़ लोग दुकानें खोलकर या मजदूरी करके परिवार चला रहे थे।
आज, 2025 में, यह समस्या और भी बड़ी है। Statista के अनुसार, भारत में 7.45% युवा बेरोजगार हैं, और कई डिग्रीधारी छोटे कामों (जैसे डिलीवरी बॉय या फ्रीलांसर) से कतराते हैं। परसाई जी का व्यंग्य हमें याद दिलाता है कि शर्म काम में नहीं, बेरोजगारी में होनी चाहिए।
उदाहरण लीजिए: एक युवा इंजीनियर नौकरी न मिलने पर घर बैठा रहता है, जबकि उसका अनपढ़ दोस्त ऑनलाइन स्टोर शुरू करके लाखों कमाता है। परसाई जी कहते हैं, “अभिमान पेट नहीं भरता, श्रम भरता है।” यह हिस्सा अध्याय का सबसे प्रभावशाली भाग है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है।
श्रम की शक्ति: सौ तरह से कमाई के रास्ते
अध्याय का दिल सौ तरह से कमाई पर है। परसाई जी व्यंग्य में कहते हैं, “अनपढ़ व्यक्ति सौ रास्ते खोज लेता है, जबकि पढ़ा-लिखा एक नौकरी की तलाश में जीवन बर्बाद कर देता है।” वह कई उदाहरण देते हैं, जो 1990s के भारत की वास्तविकता को दर्शाते हैं।
कुछ मुख्य रास्ते:
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खेती और बागवानी: अनपढ़ किसान फसल उगाकर, बाजार में बेचकर कमाता है। वह मौसम, मिट्टी, और बाजार जानता है, बिना किताबी ज्ञान के।
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शिल्पकला और हस्तकला: बढ़ई लकड़ी से फर्नीचर बनाता, कुम्हार बर्तन, बुनकर कपड़े। ये काम सौ साल से चले आ रहे हैं, और कमाई अनलिमिटेड है।
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छोटा व्यापार: सड़क किनारे चाय की दुकान, पान का ठेला, या किराने की छोटी दुकान। परसाई जी व्यंग्य में कहते हैं, “एक चायवाला दिन में सौ कप बेचकर रात को चैन की नींद सोता है, जबकि डिग्रीधारी रातभर नौकरी की चिंता में जागता है।”
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मजदूरी और दैनिक काम: निर्माण स्थल पर मजदूरी, रिक्शा चलाना, या डिलीवरी। यह तुरंत कमाई देता है, बिना इंतजार के।
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पशुपालन और मछली पालन: गाय-भैंस पालकर दूध बेचना या मछली पकड़कर बेचना। गांवों में यह सौ प्रतिशत सफल है।
परसाई जी 100 से ज्यादा उदाहरण देते हैं, लेकिन मुख्य 50-60 पर फोकस करते हैं। वह कहते हैं, “श्रम का कोई अंत नहीं, सौ रास्ते तो शुरुआत हैं।” यह हिस्सा पाठकों को प्रेरित करता है कि मेहनत से कोई भी अमीर बन सकता है।
आज के संदर्भ में, यह रास्ते और भी बढ़ गए हैं – फ्रीलांसिंग, यूट्यूब, या ऑनलाइन सेलिंग। लेकिन मूल संदेश वही है: श्रम से डरना नहीं।
1990s का संदर्भ: स्कूल सिलेबस और समाज का चित्रण
1990s में भारत आर्थिक क्रांति से गुजर रहा था। उदारीकरण ने नई नौकरियां दीं, लेकिन बेरोजगारी भी बढ़ी। UP Board की 10वीं की हिंदी किताबों में यह अध्याय इसलिए शामिल था, ताकि छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा की ओर प्रेरित किया जाए।
परसाई जी का व्यंग्य उस समय के समाज को चित्रित करता है – जहां पढ़ाई को स्टेटस सिंबल माना जाता था, लेकिन व्यावहारिक स्किल्स को नजरअंदाज किया जाता था। अध्याय में गांव-शहर की कहानी से, वह बताते हैं कि शहर की पढ़ाई गांव की मेहनत से हार जाती है।
स्कूल सिलेबस में यह नैतिक शिक्षा का हिस्सा था, जो छात्रों को बताता था कि “डिग्री से ज्यादा महत्वपूर्ण मेहनत है।” 1997-1999 में UP Board में यह “हिंदी गद्य खंड” का अध्याय था, जो परीक्षा में अक्सर पूछा जाता था।
आज, जब स्कूल सिलेबस में डिजिटल स्किल्स जोड़े जा रहे हैं, यह अध्याय याद दिलाता है कि मूल बातें नहीं बदलीं।
आधुनिक दौर में प्रासंगिकता: 2025 में सौ रास्ते
2025 में, परसाई जी का व्यंग्य और भी सटीक लगता है। डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप कल्चर ने सौ रास्ते बढ़ा दिए हैं। Statista के अनुसार, भारत में 8 करोड़ फ्रीलांसर हैं, जो बिना उच्च डिग्री के कमाते हैं।
ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके आज का मतलब: एप-बेस्ड जॉब्स, ऑनलाइन बिजनेस, या गिग इकॉनमी। परसाई जी अगर आज होते, तो शायद कहते, “पढ़ाई से स्मार्टफोन आया, लेकिन मेहनत से कमाई।”
यह अध्याय युवाओं को सिखाता है कि अभिमान छोड़कर स्किल्स सीखें।
डिजिटल कमाई के 20 तरीके (फ्रीलांसिंग से स्टार्टअप्स)
परसाई जी के सौ रास्तों को 2025 में अपडेट करें, तो डिजिटल कमाई के ये 20 तरीके हैं:
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फ्रीलांस राइटिंग: Upwork पर लेख लिखकर ₹20,000-50,000/माह।
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यूट्यूब चैनल: कुकिंग या ट्यूटोरियल वीडियो से लाखों कमाई।
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ऑनलाइन ट्यूशन: Unacademy पर पढ़ाकर ₹30,000+।
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ई-कॉमर्स स्टोर: Amazon पर सामान बेचकर।
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ग्राफिक डिजाइन: Fiverr पर डिजाइन बनाकर।
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ऐप डेवलपमेंट: फ्री कोर्स सीखकर ऐप्स बनाएं।
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सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर: Instagram पर ब्रांड प्रमोशन।
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स्टॉक ट्रेडिंग: Zerodha पर निवेश से कमाई।
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ब्लॉगिंग: WordPress पर ब्लॉग से Adsense कमाई।
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ड्रॉपशिपिंग: Shopify पर उत्पाद बेचकर।
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डिजिटल मार्केटिंग: फेसबुक ऐड्स चलाकर क्लाइंट्स से कमाई।
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पॉडकास्ट: Spotify पर पॉडकास्ट से स्पॉन्सरशिप।
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ऑनलाइन कोर्स बेचना: Udemy पर कोर्स बनाकर।
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क्रिप्टो ट्रेडिंग: Binance पर स्मार्ट ट्रेडिंग।
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एफिलिएट मार्केटिंग: Amazon लिंक्स से कमिशन।
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गिग वर्क: UrbanClap पर सर्विसेज देकर।
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NFT क्रिएशन: OpenSea पर आर्ट बेचकर।
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वीडियो एडिटिंग: Freelancer.com पर एडिटिंग जॉब्स।
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वेब डेवलपमेंट: फ्री कोर्स से वेबसाइट्स बनाकर।
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मोबाइल ऐप टेस्टिंग: Apps से टेस्टिंग जॉब्स।
ये रास्ते दिखाते हैं कि 2025 में डिग्री से ज्यादा स्किल्स मायने रखती हैं।
ट्रेड्स और स्किल्स: छोटे कामों से बड़ा कमाई
परसाई जी के समय में ट्रेड्स जैसे बढ़ईगिरी या कुम्हारी को छोटा माना जाता था, लेकिन आज वे बिजनेस बन गए हैं। 2025 में, स्किल इंडिया अभियान ने 1 करोड़+ युवाओं को ट्रेन किया, और वे अब लाखों कमाते हैं।
उदाहरण:
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बेकरी बिजनेस: एक युवा ने छोटी बेकरी शुरू की, अब चेन है – महीने का ₹5 लाख+।
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टेलरिंग: ऑनलाइन ऑर्डर से कस्टम कपड़े बेचकर ₹50,000/माह।
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प्लंबिंग: UrbanClap पर सर्विस देकर ₹40,000/माह।
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गार्डनिंग: ऑर्गेनिक फार्मिंग से उत्पाद बेचकर लाखों।
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इलेक्ट्रिशियन: सोलर पैनल इंस्टॉलेशन से कमाई दोगुनी।
परसाई जी कहते, “छोटा काम नहीं, बड़ा अभिमान है जो बाधा है।” आज के युवा इन ट्रेड्स से करोड़पति बन रहे हैं।
परसाई की शैली: व्यंग्य और हास्य का मिश्रण
हरिशंकर परसाई की लेखन शैली व्यंग्य से भरी है, जो हास्य के माध्यम से समाज पर प्रहार करती है। इस अध्याय में, वह रामू की कहानी में व्यंग्य करते हैं – “रामू ने डिग्री ली, लेकिन डिग्री ने उसका दिमाग खा लिया।” यह हंसाता है, लेकिन सोचने पर मजबूर करता है।
परसाई जी के अन्य व्यंग्य जैसे “ऐसे भी चलेगा” में भी श्रम पर जोर है। उनका हास्य सरल है – “पढ़ाई ने हमें किताबें पढ़ना सिखाया, लेकिन जीवन की किताब से दूर कर दिया।” 1990s में उनका यह निबंध छात्रों को प्रेरित करता था कि शिक्षा का उपयोग श्रम के साथ करें।
2025 में, उनका व्यंग्य सोशल मीडिया मीम्स में जीवित है, जहां युवा “डिग्री vs स्किल्स” पर जोक्स शेयर करते हैं। परसाई जी की शैली आज भी ताजा लगती है, क्योंकि समाज की विसंगतियां नहीं बदलीं।
आज के युवाओं के लिए 10 सबक: अभिमान छोड़ो, श्रम अपनाओ
परसाई जी का निबंध आज के युवाओं के लिए 10 सबक देता है:
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अभिमान छोड़ो: डिग्री से छोटे कामों में शर्म न करें – स्टार्टअप्स शुरू करें।
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स्किल्स सीखो: ITI या ऑनलाइन कोर्स से ट्रेड्स सीखें, जैसे ग्राफिक डिजाइन।
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छोटे से शुरू करो: चाय की दुकान से लाखों कमाएं, जैसे कई उद्यमी।
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मेहनत का महत्व: नौकरी की तलाश में समय बर्बाद न करें, अपना बिजनेस बनाएं।
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सौ रास्ते खोजो: फ्रीलांस, यूट्यूब, ई-कॉमर्स – विकल्प अनगिनत हैं।
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शिक्षा का सही उपयोग: पढ़ाई से ज्ञान लें, लेकिन श्रम से लागू करें।
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समाज की विसंगति देखो: व्यंग्य से सीखें कि समाज गलत मानदंड बनाता है।
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आत्मनिर्भर बनो: गांधी जी की तरह, श्रम से स्वावलंबी बनें।
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हास्य से सीखो: व्यंग्य हंसाता है, लेकिन गहराई देता है।
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भविष्य बनाओ: 2025 में AI जॉब्स छीन रहा है, स्किल्स से सौ रास्ते बनाएं।
ये सबक जीवन बदल सकते हैं।
नैतिक शिक्षा का महत्व: 1990s से 2025 तक का सफर
1990s में नैतिक शिक्षा स्कूल सिलेबस का हिस्सा थी, जो छात्रों को जीवन मूल्य सिखाती थी। परसाई जी का यह निबंध उस दौर की बेरोजगारी और आर्थिक बदलाव को दर्शाता है। आज, 2025 में, NEP 2020 ने व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया, जो परसाई जी की सोच से मेल खाता है।
भारत में 1 करोड़ युवा स्किल इंडिया से ट्रेन हो चुके हैं, और वे छोटे बिजनेस से कमाते हैं। परसाई जी का व्यंग्य आज के स्टार्टअप कल्चर में फिट बैठता है।
उदाहरण और केस स्टडीज: वास्तविक जीवन से सीखें
परसाई जी के अध्याय को वास्तविक जीवन से जोड़ें। केस स्टडी 1: धीरूभाई अंबानी, जो पढ़ाई छोड़कर छोटे बिजनेस से रिलायंस साम्राज्य बनाए। केस स्टडी 2: एक UP का युवा जो ITI से इलेक्ट्रिशियन बना और सोलर पैनल कंपनी खोली, अब करोड़पति है।
आधुनिक केस: कोटा का एक छात्र डिग्री छोड़कर यूट्यूब पर ट्यूटोरियल चैनल शुरू किया, अब 10 लाख सब्सक्राइबर्स हैं। परसाई जी कहते, “ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके – लेकिन पढ़ाई और मेहनत का मेल अमीर बनाता है।”
ये उदाहरण दिखाते हैं कि अध्याय का संदेश अमर है।
निष्कर्ष: श्रम ही सच्ची शिक्षा है
ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके – हरिशंकर परसाई का यह व्यंग्य 1990s से 2025 तक की यात्रा में भी प्रासंगिक है। यह हमें सिखाता है कि शिक्षा अभिमान न लाए, बल्कि श्रम को अपनाए। आज के युवा, सौ रास्ते खोजो – फ्रीलांसिंग से स्टार्टअप्स तक। इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद, आप न सिर्फ इसे 100 बार पढ़ेंगे, बल्कि दोस्तों को पढ़ाएंगे। अपनी मेहनत शुरू करें, और जीवन बदलें!
अपनी साइट पर और व्यंग्य पढ़ें। शेयर करें और कमेंट्स में अपनी कहानी बताएं।
FAQ
ना पढ़ते तो खाते सौ तरह से कमाके का मुख्य संदेश क्या है?
यह हरिशंकर परसाई का व्यंग्य है, जो बताता है कि श्रम शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अनपढ़ व्यक्ति सौ तरह से कमा सकता है, जबकि पढ़ाई अहंकार लाती है। 1990s का यह पाठ आज भी प्रेरणा देता है।
यह अध्याय किस किताब में था?
संभवतः UP Board की हिंदी गद्य खंड (1997-1999) में, परसाई के निबंधों से। यह 10वीं कक्षा में नैतिक शिक्षा का हिस्सा था।
क्या यह आज प्रासंगिक है?
हां, 2025 में फ्रीलांसिंग, स्टार्टअप्स जैसे सौ रास्ते इसकी प्रासंगिकता दिखाते हैं। बेरोजगारी में यह युवाओं को प्रेरित करता है।
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